आलोचना >> कुछ साहित्य चर्चा भी कुछ साहित्य चर्चा भीश्रीलाल शुक्ल
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कुछ साहित्य चर्चा भी श्रीलाल शुक्ल वरिष्ठ व्यंग्य-लेखक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने व्यंग्य का विपुल, विविध और बहुआयामी उपयोग किया है। आप उन थोड़े से भारतीय लेखकों में हैं, जिन्होंने गद्य को एक नया जीवन दिया है। उनके व्यंग्य से इतर गद्य की श्रेष्ठता का परिचय कराती है - कुछ साहित्य चर्चा भी। यह पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है, जिनमें श्रीलाल शुक्ल के समीक्षात्मक लेख, संभाषण, व्याख्यान और साक्षात्कार संगृहीत हैं। पढ़ीस, कबीर, निराला, यशपाल, अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, निर्मल वर्मा, रमेशचन्द्र शाह, कुँवर नारायण, गिरिराज किशोर, श्रीराम वर्मा और नासिरा शर्मा के लेखन के बहाने श्रीलाल शुक्ल पूर्व और वर्तमान की सभ्यता-समीक्षा करते चलते हैं। समय और समाज के हर परिवर्तन-परिवर्द्धन पर उनकी दृष्टि जाती है।
श्रीलाल शुक्ल की रचनाशीलता आलोचनात्मक विवेक से प्रेरित, संचालित और संयमित रही है। वे खूब पढ़नेवाले और पढ़े हुए पर अपनी राय बनानेवाले लेखकों में माने जाते हैं। उन्हें सुनना भी एक अद्भुत अनुभव होता है। पुस्तक में शामिल संभाषणों और व्याख्यानों से यह अनुमान लगाया जा सकता है। पुस्तक में शामिल साक्षात्कार में श्रीलाल शुक्ल खुलकर सामने आते हैं और सामाजिक-राजनीतिक विमर्शकार सिद्ध होते हैं। गायिका गिरिजा देवी और कथावाचक पंडित राधेश्याम पर केंद्रित लेखों में जहाँ लेखक की दूसरी रुचियाँ भी सामने आती हैं, वहीं राग दरबारी संस्मरण, मेरी कथा यात्रा के कुछ मोड़, साहित्य के लिए मेरी कसौटी आदि आलेखों में श्रीलाल शुक्ल आत्मसमीक्षा करते प्रतीत होते हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की तरह श्रीलाल शुक्ल साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखते हैं। यह पुस्तक उनकी सृजनात्मक दुनिया को भली-भाँति जानने और समझने का अवसर उपलब्ध कराती है।
श्रीलाल शुक्ल की रचनाशीलता आलोचनात्मक विवेक से प्रेरित, संचालित और संयमित रही है। वे खूब पढ़नेवाले और पढ़े हुए पर अपनी राय बनानेवाले लेखकों में माने जाते हैं। उन्हें सुनना भी एक अद्भुत अनुभव होता है। पुस्तक में शामिल संभाषणों और व्याख्यानों से यह अनुमान लगाया जा सकता है। पुस्तक में शामिल साक्षात्कार में श्रीलाल शुक्ल खुलकर सामने आते हैं और सामाजिक-राजनीतिक विमर्शकार सिद्ध होते हैं। गायिका गिरिजा देवी और कथावाचक पंडित राधेश्याम पर केंद्रित लेखों में जहाँ लेखक की दूसरी रुचियाँ भी सामने आती हैं, वहीं राग दरबारी संस्मरण, मेरी कथा यात्रा के कुछ मोड़, साहित्य के लिए मेरी कसौटी आदि आलेखों में श्रीलाल शुक्ल आत्मसमीक्षा करते प्रतीत होते हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की तरह श्रीलाल शुक्ल साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखते हैं। यह पुस्तक उनकी सृजनात्मक दुनिया को भली-भाँति जानने और समझने का अवसर उपलब्ध कराती है।
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